Nuskhe

उदर - रोग नाशक नुस्खे 
कब्ज़ 
आज कल कब्ज़ होना मामूली बात हो गई है l  ऐसे भाग्यशाली बहुत कम मिलते हैं जिन्हें दोंनो वक़्त सुबह शाम खुल कर शौच हो जाता हो और शौच के लिए शौचालय में बैठ कर इन्तज़ार न करना पड़ता हो ऐसे लोगो को भाग्यशाली इसलिए कह की एक कब्ज़ के न होने से शरीर स्वस्थ, फुर्तीला और हष्ट-पुष्ट बना रह सकता है l ग्रीष्म ऋतु में कब्ज़ होना ज्यादा दुखदाई होता है क्योकि यह भी वातप्रकोप में सहायक होता है गैस ट्रबल यानि वायु-प्रकोप का निज कारण कब्ज़ होना ही होता है l
जिन्हें कब्ज़ की शिकायत हो वे निम्नलिखित उपाय नियमपूर्वक करें 
  • प्रातः उठते ही कुल्ला करके 2 -3 गिलास कुकुना गर्म पानी पीना चाहिए, फिर शौच के लिए जाना चाहिए 
  • भोजन करते समय अपना ध्यान चबाने पर केंद्रित रखना चाहिए इतनी बार चबाना चाहिए की आहार पानी की तरह पतला होकर हलक मैं उतर जाये l जल्दी-जल्दी न चबाएं और न जबरदस्ती निगलें l 
  • भोजन के साथ कच्चे सलाद का प्रयोग करना चाहिए 
  • शाम का भोजन थोड़ी कम मात्र में और हलका होना चाहिए l शाम का भोजन जितनी जल्दी कर सकें उतना ही अच्छा है वरना सोने से 2 घण्टे पहले तो करना ही चाहिए l
  • सोते समय ठण्डे पानी या दूध के साथ सत इसबगोल 1-2  चम्मच मात्रा में प्रतिदिन सेवन करना चाहिए इससे सुबह शौच खुल कर होता है और पेट हलका हो जाता है l 
  • कब्ज़ का मूल कारण शरीर में तरल पदार्थ की कमी होना l  पानी की कमी से आंतो में मल सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पड़ता है अतः कब्ज़ से परेशान रोगी को दिन में 3 से 5 लीटर पानी पीने की आदत डालनी चाहिए l  इससे कब्ज़ रोग निवारण में बहुत मदद मिलती है l 
  • रात्रि में सोने से पहले दो चम्मच गुलकन्द खाकर ऊपर से  एक गिलास गर्म दूध पी लें l ऐसा करने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है l  यह प्रयोग लगातार एक सप्ताह तक करें l 
यह कुछ उपाय हैं जिनको प्रयोग में लेकर नियमित रूप से अमल करने पर कब्ज़ से बचा जा सकता है l यदि कब्ज़ रहती हो तो इन उपायों से धीरे-धीरे दूर की जा सकती है l
छोटी हरड़ 
कब्ज दूर करने के लिए छोटी हरड़

कब्ज दूर करने के लिए छोटी हरड़ के चूर्ण का उपयोग करना निरापद भी होता है और हर तरह की कब्ज यानि मामूली कब्ज़,कठोर कब्ज़,नई कब्ज़ पुरानी कब्ज़ आदि के लिए लाभदायक भी होती है हरड़ रसायन के गुणों वाली होने से शरीर का पोषण भी करती है l
(1 ) सुबह का भोजन करने के बाद, एक छोटी हरड़ के बारीक़ टुकड़े कर, मुह में रख लें  और लगभग घण्टें भर तक चूसते रहें l घण्टें भर तक इसे चूसने के बाद चबा कर निगल जाएं  l इसका स्वाद अप्रिय होने से शुरू - शुरू में असुविधा होगी पर फिर आदत पड़ जाएगी  l इसे सिर्फ एक बार सुबह के भोजन के बाद चूसना काफ़ी है l इसे लगातार जीवन- पर्यन्त सेवन किया जा सकता है l  सभी ऋतुओं में और सभी उम्र वालों के लिए यह सेवन योग्य है l केवल शरीर अत्यन्त थका हुआ,  अत्यन्त दुर्बल , बहुत दुबला, भूखा प्यासा, अम्लपित्त बढ़ा हुआ या पित्त कुपित अवस्था में हो, तब हरड़ का सेवन नहीं करना चाहिये l गर्भवती स्त्री को भी हरड़ का लगातार सेवन नहीं करना चाहिए l
इस प्रकार प्रतिदिन एक हरड़ के टुकड़े को चूस कर निगलने का अभ्यास करने वाले को कब्ज़ होती ही नहीं और यदि हो तो धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है l  इसके आलावा अन्य लाभ भी होते हैं जैसे सब उदर विकार दूर होते हैं, दस्त साफ़ होता है, भूख खुल कर लगती है पाचन शक्ति तीव्र होती है रक्त शुद्ध होता है नेत्र ज्योति बढ़ती है और उम्र बढ़ जाने पर भी चश्मा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है यह प्रयोग जीवन-पर्यन्त किया जा सकता है l
(2 ) रात को सोने से पहले छोटी हरड़  का महीन चूर्ण ठण्डे पानी के साथ लेना होता है । इसकी मात्रा अपने पेट की स्थिती के अनुसार स्वयं ही निर्धारित करनी होती है जो 5 -6  दिन में निश्चित हो जाती है । शुरू में आधा चमच्च (छोटा) चूर्ण फांक कर पानी के साथ निगल जायें । सुबह शौच क्रिया में क्या फर्क पड़ता है यह देखें । जब तक फर्क न पड़े तब तक चूर्ण की मात्रा बढ़ाते रहें । एक चम्मच मात्रा के बाद आधा-आधा चम्मच बढ़ायें,एक-एक चम्मच नहीं । जिस मात्रा में सुबह उठते ही, अच्छे दबाव (प्रेशर) के साथ, एक बंधा हुआ दस्त हो और पेट हल्का हो जाये वही मात्रा व्यक्ति के लिया उचित होती है । उसी मात्रा को प्रतिदिन सोते समय लेते रहें । मात्रा निर्धारित करते समय एक बात ध्यान में रखें कि जिस मात्रा में स्वाभविक ढंग से,बिना जोर लगाए, सिर्फ एक बंधा हुआ दस्त ही हो वही मात्रा सेवन करता के लिये उचित मात्रा होगी पर दस्त पतला आये,एक से अधिक दस्त हो जायँ तो समझें कि चूर्ण की मात्रा ज्यादा हो गई लिहाज़ा दूसरे दिन चूर्ण की मात्रा कम कर लें । इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को चूर्ण की मात्रा को घटा बढ़ा कर, अपने अनुकूल मात्रा स्वयं ही निश्चित करनी होगी । एक बार मात्रा तय कर लेने के बाद भी, यदि कुछ दिनों के बाद वह मात्रा कम यानि प्रभावहीन अथवा ज्यादा यानि पतला दस्त लेने वाली लगे तो उस मात्रा में यथोचित घट-बढ़ करके फिर से अपने अनुकूल मात्रा को निश्चित कर लें । प्रायः देखा गया है कि चूर्ण की मात्रा घटाने के मामले ज्यादा हुए हैं क्योकि धीरे-धीरे,प्राकृतिक रूप से पाचन-तन्त्र की प्रक्रिया सुधरती जाती है सशक्त होती जाती है अतः पाचन सुधरने से कब्ज रहना स्वतः ही कम होता जाता है और इसलिए चूर्ण की मात्रा घटाना पड़ती है वरना पतले दस्त होने लगते हैं । धीरे-धीरे जब कब्ज बनने की स्थिति कम होते-होते बिल्कुल समाप्त हो जाती है तब हरड़ के चूर्ण को सेवन करने ही जरूरत भी खत्म हो जाती है । यह स्थति भले ही कितने समय बाद बने पर बनती है और चूर्ण के सेवन से छुटकारा मिल जाता है यानि सेवन कर्ता इसका आदी (Addicted) यानि सेवन के लिये विवश नहीं होता । यह निरापद प्रयोग है ।
(जो सोने से पहले दूध पीने के आदी हों वे दूध पहले पी लिया करें और इसके आधा घण्टे बाद हरड़ चूर्ण का सेवन करें )
कब्जनाशक घरेलू नुस्खे 
  1. मुलहठी का चूर्ण 100  ग्राम, सौंठ चूर्ण 10 ग्राम और गुलाब के सूखे फूल 5 ग्राम तीनों को एक गिलास  पानी में डाल कर उबालें। जब पानी आधा शेष रहे तब उतार कर छान लें । ठण्डा करके सोते समय पियें । यह नुस्खा कब्जनाशक तो है ही,पेट में जमी हुई आंव को भी निकाल देता है । 
  2. त्रिफला 300 ग्राम, काला नमक 150 ग्राम, सनाय 100 ग्राम, अजवायन 100 ग्राम, और काली मिर्च 100 ग्राम। अजवायन तवे पर सेक लें। सब द्रव्यों को अलग अलग कूट पीस कर खूब बारीक़ करके मिला लें और शीशी में भर लें । सोते समय एक चम्मच चूर्ण ठण्डे पानी से सेवन करें। इस नुस्खे का प्रयोग कब्ज होने पर ही करें और लाभ होने पर बंद कर दें । 
  3. डण्ठल रहित सनाय की पत्ती 50 ग्राम,सौफ 100 ग्राम, शक़्कर का पिसा हुआ बूरा 200 ग्राम। सौफ को तवे पर सेक लें और सनाय की पत्ती के साथ मोटा मोटा कूट लें तीनों द्रव्यों को मिला लें सोते समय 1 या 2 चम्मच या अपनी स्थिति के अनुकूल मात्रा में कुकुने गर्म पानी के साथ फांक लें। इसे लाभ न होने तक सेवन कर बन्द कर दें। यह हलका जुलाब है  
वातप्रकोप- नाशक नुस्खे 

वात प्रकोप को प्रचलित भाषा में गैस बनना, बढ़ना और गैस-ट्रबल होना कहा जाता है। वातकारक पदार्थों के अति सेवन करने, अपच और कब्ज होने तथा समय एवं आयु के प्रभाव से भी वात का प्रकोप होता है जैसे वर्ष भर में वर्षाकाल में, 24 घण्टे में पिछले प्रहर (ब्रह्ममुहूर्त या अमृत-बेला का समय) में और जीवन (आयु) के बृद्धावस्था में वात का प्रकोप रहता है शरीर में गैस की वृद्धि होने का मुख्य कारण कब्ज़ होने से मल का सड़ना तथा रूखापन का होना होता है वात कुपित होने पर पेट फूलना, जोड़ों में दर्द होना, शरीर में कहीं भी दर्द होना, आमवात, सायटिका आदि व्याधियां उत्त्पन्न होती हैं। वक्त-बेवक्त तथा देर-सबेर भोजन करने, देर रात तक जागने अति कामुक प्रवृति रखने, अधिक श्रम करने और भूख सहन करने आदि (अनुचित विहार ) से भी वात का प्रकोप होता है।
वातप्रकोप- नाशक घरेलू नुस्खे 
  1. वात  प्रकोप के कारण शरीर में कहीं दर्द होता हो तो एक कप मिट्टी का तैल और पिसा हुआ कपूर 10 ग्राम मिला कर एक शीशी में भर कर कार्क लगाकर धूप में रख दें। आधा घण्टे बाद उठा लें। इस तेल को दर्द वाले अंग पर लगा कर धीरे-धीरे मसले और सेक लें। दर्द दूर करने यह सरल, सस्ता और अचूक इलाज है । 
  2. वत कुपित होने पर भयंकर उदरशूल होता है जिससे पीड़ित हुआ व्यक्ति मछली की तरह तड़पता है। इस व्याधि को वायु - गोला कहते हैं एक चम्मच अरण्डी का तैल और एक चम्मच दही मिला कर खिला दें। आधा घण्टे बाद फिर यही खुराक और दे दें। चमत्कार की तरह लाभ होगा। 
  3. अजवायन का चूर्ण और काला नमक दोनों को 3 -3 ग्राम मात्रा में मिला कर पीस लें और फांक कर ऊपर से कुन कुना गर्म पानी या छाछ ( मठा ) पी लें। वायु गोला, गैस ट्रबल एवं वातप्रकोप का तुरंत शमन हो जाएगा।  
  4. लहसुन की दो कलियां छील कर दो चम्मच शुद्ध घी में तल कर, चबा कर घी सहित खा लें । वात प्रकोप का तुरन्त शमन हो जयेगा । 
  5. वायु गोल की तरह एक और भयंकर कष्ट देने वाली वातजन्य व्याधि होती है साइटिका (sciatica) जिसमें कूल्हे से लेकर एड़ी तक ( पैर के पिछले भाग में ) इतनी भयंकर पीड़ा होती है मानो पैर फट जायेगा । इसका कष्ट भुक्त भोगी ही जनता है । 
किसी भी बाग बगीचे में,नर्सरी उद्यान, पार्क या गांव बाहर परिजात का वृक्ष आमतौर से पाया जाता है यह वृक्ष लगभग 30 फ़ीट ऊंचा और काफी घना होता है।  इसे शेफालिका, परजात और हरसिंगार भी कहते हैं । इसे इंगलिश में नाइट जेस्मिन ( Night Jasmine ) कहते हैं यह वृक्ष सारे भारत में पाया जाता है
इसके पत्ते प्रयोग में लिये जाते हैं। लगभग 250 ग्राम ताजा पत्ते तोड़ लाएं। एक लीटर पानी में डाल कर इतनी देर तक उबालें कि पानी टूट कर 750 मि.ली.शेष बचे। इसे उत्तर कर ठण्डा कर लें और शीशी में भर लें। एक रत्ती असली केशर पीस कर डाल दें। रोगी को 100 -100 मि.ली  सुबह शाम पिलायें। ऐसी चार बोतलें ( 3 लीटर ) एक के एक तैयार करके सेवन करतें जाएँ। इस प्रयोग से निश्चित ही सायटिका का दर्द जाता रहेगा । 
एक जरूरी बात याद रखें कि वसन्त ऋतु के दिनों में इसके पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः वसन्त ऋतु के दिनों में इन पत्तों का प्रयोग न करें शेष सभी ऋतुओं में इस नुस्खे का सेवन करना निश्चयपूर्वक लाभदायक सिद्ध होगा।  

अजमोदादि चूर्ण :
घटक द्रव्य :- अजमोद,वायविडंग, सेंधानमक, देवदारू, चित्रक जड़ की छाल, पीपलामूल, पीपल, सौंफ, काली मिर्च- सब 10-10 ग्राम बड़ी हरड़ 50 ग्राम, विधारा 100 ग्राम और सोंठ 100 ग्राम। 
बनाने की विधि:- सब को अलग-अलग कूट पीस कर महीन चूर्ण करके तीन बार छान कर शीशी में भर लें। चाहे तो चूर्ण के बराबर मात्रा में गुड मिला कर 2-2 ग्राम की गोलियां बना लें। 
मात्रा और सेवन विधि :- 2 ग्राम चूर्ण या 1-1 गोली गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेबन करें। लाभ न होने तक सेबन करें। बाद में सेवन करना बंद कर दें। जब- जब आवश्यकता पड़े तब-तब सेबन कर लिया करें। 
लाभ :- यह योग वात का शमन करके वातजन्य व्याधियों को नष्ट करता है।  



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